लेखनी कविता - कथनी-करणी का अंग -कबीर

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कथनी-करणी का अंग -कबीर  जैसी मुख तैं नीकसै, तैसी चालै चाल।  पारब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल॥  पद गाए मन हरषियां, साँखी कह्यां अनंद।  सो तत नांव न जाणियां, गल ...

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